Exams Normalization Formula 2025: नॉर्मलाइजेशन एक प्रक्रिया है जिसकी सहायता से दो या दो से अधिक सीफ्टों में आयोजित हुई परीक्षाओं के स्तर को सामान रखने के लिए अपनाया जाता है। आयोग द्वारा कई परीक्षाओं के लिए नॉर्मलाइजेशन का फार्मूला छुपा कर रखा जाता है। वही एसएससी आयोग द्वारा नॉर्मलाइजेशन के फार्मूला को नोटिफिकेशन के साथ जारी किया जाता है। अब हम लोग जानते हैं कि नॉर्मलाइजेशन किसी भी परीक्षाओं के लिए कैसे काम करता है। और इसका परीक्षा देने वाले उम्मीदवारों पर क्या प्रभाव पड़ता है।
परीक्षाओं में नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया की शुरुआत तब हुई जब परीक्षाएं दो से अधिक सीफ्टों या दो से अधिक दिनों में आयोजित होने लगी। उससे पहले परीक्षाओं में कोई नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया नहीं थी। नॉर्मलाइजेशन का अर्थ ही है उम्मीदवारों के अंकों को नॉर्मलाइज करना। ताकि किसी भी बच्चों को यह ना लगे की उनके शिफ्ट में पूछे गए प्रश्न काफी आसान थे और दूसरे शिफ्ट में पूछे गए प्रश्न काफी कठिन। इन्हीं परीक्षा के लेवल को मिलने के लिए नॉर्मलाइजेशन के फार्मूला को अपनाया गया है।
Exams Normalization Formula 2025
नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया किसी भी परीक्षा में इसलिए अपनाया जाता है। अधिकतर संस्था उम्मीदवार की संख्या अधिक होने के कारण एक ही दिन में परीक्षाएं को आयोजित नहीं कर पाती है। यह एक ही शिफ्ट मे इतने उम्मीदवारों की परीक्षा लेना संभव नहीं होता है। इसीलिए किसी भी संस्था द्वारा परीक्षाओं को दो से अधिक दिनों और दो से अधिक सीटों में आयोजित करना पड़ता है।
ऐसे में इन सभी सीटों के लिए समान क्वेश्चन पेपर बनाना भी काफी मुश्किल होता है। कई बार एक ही दिन के दो सीटों में प्रश्नों का लेवल काफी कठिन तो काफी आसान हो जाता है। ऐसे ही दो दिनों की परीक्षा के लिए प्रश्न पत्र कभी कठिन तो कभी आसान हो जाता है। ऐसे में उन उम्मीदवारों का चयन अधिक मात्रा में होगा जिनका प्रश्न पत्र आसान था वही कठिन प्रश्न वाले उम्मीदवारों का चयन बहुत ही काम होगा। जिससे उम्मीदवारों के बीच और समानताएं आ जाएंगे। इन्हीं असमानताओं को सामान करने के लिए नॉर्मलाइजेशन का फार्मूला अपनाया जाता है। नीचे आप एसएससी द्वारा अपनाए गए नोड्यूलेशन फार्मूला को देख सकते हैं।
Exams Normalization Formula 2025: यह एग्जाम में कैसे काम करता है?
उदाहरण : जानकारी के अनुसार दो या अधिक दिनों में होने वाली परीक्षाओं में नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया को लागू किया जाता है। इसे इस तरह से समझा जा सकता है। माल लेते हैं कि कोई परीक्षा 12 और 13 दिसंबर को 150 अंकों का आयोजित किया जाता है। 12 दिसंबर को आयोजित परीक्षा में बैठे उम्मीदवारों का औसतन नंबर 150 में से 110 अंक आए। जबकि 13 दिसंबर को आयोजित परीक्षा में बैठे अभ्यर्थियों का औसत 150 में से 100 अंक ही आए। ऐसे में आयोग का मानना है कि 12 दिसंबर की परीक्षा के प्रश्न पत्र आसान थे जबकि 13 दिसंबर के प्रश्न पत्र थोड़ा कठिन।
अब आयोग प्रश्न पत्र के कठिन और सामान्य का निर्धारण करने के लिए अभ्यर्थियों के औसत नंबर के आधार के माध्यम से दोनों दिनों की परीक्षा के आधार पर छात्रों के अंकों को नॉर्मलाइज कर 105 के आसपास कर दिया जाता है। ऐसे में जहां दूसरे दिन की परीक्षा दिए अभ्यर्थियों का कुछ नंबर बढ़ जाता है।
परीक्षाओं में नॉर्मलाइजेशन के फायदे और नुकसान
नॉर्मलाइजेशन उम्मीदवारों जो परीक्षा में उपस्थित होते हैं उन्हीं के हित के लिए इस प्रक्रिया को अपनाया जाता है। इसके कई लाभ है जैसे की परीक्षा की लेवल को सामान करना, उम्मीदवारों के बीच भिन्नता को सामान करना, सभी उम्मीदवारों के लिए समान परिणाम निश्चित करना। लेकिन यह प्रक्रिया कई बार परीक्षाओं में गलत साबित हो जाती हैं। यह कैसे होती है इसकी सूचना आयोग द्वारा नहीं दी जाती है। लेकिन इसके कई उदाहरण मौजूद है।
ऑर्गनाइजेशन की प्रक्रिया के दौरान कई बार 150 अंकों के परीक्षा में उम्मीदवार को निर्धारित अंकों से अधिक अंक मिल जाते हैं। कई बार उम्मीदवारों के अंक इतने घट जाते जाते हैं कि ऐसा होना संभव ही नहीं है। हालांकि आयोग द्वारा इन चीजों को सुधारने के लिए निरंतर कार्य जारी है। उम्मीदवार ऐसे ही पढ़ाई से जुड़ी ब्लॉक बढ़ाने के लिए वेबसाइट के होम पेज पर जा सकते हैं।
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